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बिल नहीं दिल बदलें...

लीजिए....अचानक से दोबारा उत्पन्रन हुए और निर्भया के माता-पिता आशा देवी और बद्रीनाथ जी के संघर्ष, कोशिश और  उम्मीदों, प्रयासों के कारण पैदा हुए राजनीतिक और जनदबाव की वजह से सरकार Juvenile Justice Bill ले तो आई पर शायद कुछ अफरा-तफरी सी नजर आ रही है इसमें..पता नहीं कहाँ आग लगी है..पास कराने की जल्दी में ना तो इन गंभीर अपराधों की जड़ में देखा जा रहा है ना सही तरह से इस तरह के जघन्य अपराधों से समाज को बचाने के उपायों की तरफ ध्यान दिया जा रहा है..ताकि देश मे किसी भी लड़की को दूसरी निर्भया कहने की नौबत ना आये..
हालांकि मेरी सोच इतनी नाउम्मीदी और नकारात्मक नहीं है ..पर स्वतंत्र तौर पर लिखकर अपना नजरिया रखने की कोशिश कर रहा हूँ..क्या पता माननीया बाल विकास मंत्री श्रीमति मेनका गाँधी जी या फिर हमारे Technocrat और Social Media King माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी, मेरा ये ब्लॉग पढकर मेरी राय पर कोई निर्णय ले लें और मेरा जिक्र अपने "मन की बात" में करदें..क्या पता..खैर छोड़िये मुद्दे पर आते हैं..

यह मानने में कोई दिक्कत नहीं है कि जिस दिन से निर्भया के नाबालिग अपराधी की रिहाई की खबर मीडिया और मार्केट में फैली तब से जनदबाव बढने लगा और सरकार के लिए मजबूरी हो गई कि इस बिल को लाना ही पड़ेगा..किसी भी हालत में ..इसी सत्र में..जिसमें की काम कम और हंगामा ज्यादा हुआ है..

अपना नजरिया इस बिल के प्रति पहले ही समझा दूँ कि जहाँ तक मैने इस बिल को पढा, देखा, सुना और समझा है प्रथमदृश्टया मुझे इस बिल में कुछ भी खास नहीं मिल रहा..जिससे की आने वाले वर्षों में नाबालिग अपराध करना बंद कर देंगें या समाज अचानक से सुधर जायेगा..

इस बिल में नाबालिग की परिभाषा बदली गई है कि जघन्य अपराध की स्थिति मेंं पहले 18 साल से कम उम्र के अपराधी को नाबालिग माना जाता था उसकी बजाय अब 16 साल से कम उम्र के आरोपी को नाबालिग माना जायेगा..पहले अगर अपराधी की उम्र 18 साल से कम होती थी तो उसका केस सामान्य केसों से अलग Juvenile Justice Board के पास भेजा जाता..जहाँ उसका पूरी ट्रायल अलग चलता..और अपराध साबित होने पर उसे अधिकतम सिर्फ तीन साल की सजा होती थी चाहे उसने कुछ भी किया हो, उस सजा के दौरान उसे जेल में नहीं बल्कि बाल सुधार गृह में रखा जाता था, जिनकी हालत नर्क से कम नहीं होती , वहाँ उन्हें बुरी तरह से ट्रीट किया जाता है..तो जरा सोचिए की जब "बाल सुधार गृह" एक "बाल बिगाड़ गृह" की तरह काम करेगा तो उसमें सजायाफ्ता और रिहा होने वाले बालकैदियों से क्या अपेक्षा करें कि वो अपने किये पर पछतायेंगे, अपने आप में सुधार लायेंगे या बाहर आकर अच्छे इंसान बनकर दिखायेंगे..इसकी उम्मीद नगण्य के बराबर है और हमें इस सच्चाई को मानना होगा..वहाँ रहकर वो बच्चें गैंग बनाते हैं, गुटबाजी, गुंडागर्दी, बदतमीजी सीखते है और बाहर आकर एक बड़े गुंडे का रूप लेते हैं जो या तो किसी नेता के छत्रछाया में घूमता नजर आयेगा या फिर Radicalization के सम्पर्क में आकर आतंकी बनेगा ..और ये सब नहीं हुआ तो खुद की कोई "सेना" बना लेगा, वैसे आजकल खुद की "सेना" बनाकर उत्पात मचाने का फैसन चल रहा है मार्केट में... कुछ भी हो पर इतना तय है कि वो एक सामान्य इंसान कतई नहीं बन सकता..क्योंकि उसे ऐसा माहौल मिला ही नहीं जहाँ उसे उसकी गलती का एहसास करवाया जा सके, नये सिरे से जीवन शुरू करने की सीख मिल सके, जीवन के मूल्य और आदर्श पढा सके..
जब हम उस नाबालिग अपराधी को ये सब नहीं दिलवा सकते तो फिर काहे के बाल सुधार गृह??
आये दिन न्यूज में सुनतें हैं कि बाल सुधार गृह से बच्चे भागे..या बाल सुधार गृह से निकला बच्चा आतंकी वारदात में शामिल पाया जाये..पर कभी ये तो नहीं सुना कि बाल सुधार गृह से निकला बच्चा IAS/ IIT Topper बना....क्यों??
क्योंकि उसे वहाँ कभी शिक्षा तो दी ही नहीं गई...

तो फिर बाल सुधार गृह का औचित्य क्या?? या तो उनको पूरी तरह बंद करदो और हर अपराधी को उसके अपराध के आधार पर सजा दो..ना कि उसकी उम्र के आधार पर..

पर ऐसा होता नहीं है..ना ही हो सकता है..क्योंकि भारत United Nation में हस्ताक्षरकर्ता है कि बाल अधिकारों का किसी भी सूरत में हनन नहीं होगा...तो बाल सुधार गृह बंद करने का आईडिया तो हटा ही दो..

तो अब बात आती है दूसरे ऑप्सन कि जिसमें की "बाल सुधार गृह" का खुद का कुछ सुधार किया जाये...वहाँ कुछ अच्छे कर्मचारियोंं, शिक्षकों को नियुक्त किया जाये जो कि इन भटके हुए बच्चों को इनकी गलती का एहसास दिलायें, प्रायश्चित करवायें, उन्हें कुछ संस्कार देंं ताकि वहाँ से निकलकर वो अपनी "बचपन की गलतियोंं" से एक सबक लें और उन गलतियों को भूलाकर एक नया जीवन शुरू करें..

तो जी हमने उनके सुधार गृह से निकलने के बाद के आदर्श भविष्य पर तो चर्चा कर ली पर उनके भूत की चर्चा के बिना ये भविष्य दूर की कौड़ी है..

सबसे पहले कारण जानने की कोशिश करें कि एक कम उम्र का बच्चा इस तरह के जघन्य अपराधों में शामिल होता क्यों है??????
क्या परिस्थतियाँ वो अपने सामने वो पूर्व में देखता और भविष्य में अन्यों के साथ दोहराता है???

मैने अपने हिसाब से कुछ सोचीं है जिन्हे मैं समझाने की कोशिश कर रहा हूँ..

कारणों के साथ जड़ में ही उनका निवारण फ्री-फ्री-फ्री..

1.लड़का-लड़की में भेदभाव-: सबसे पहले बच्चे को संस्कार मिलने की शुरूआत उसके घर से होती है..उसके प्रथम शिक्षक उसकी माँ से होती है..और जब उसकें संस्कारों की नींव ही खोखली होगी तो उस पर बनने वाली व्यक्तित्व की इमारत टिक नहीं पायेगी..क्योंकि जब एक बच्चा देखता है कि उसकी माँ उसकी थाली में ज्यादा घी, ताजा गर्म रोटी, गर्म सब्जी और मिठाई और पकवान डाल रही हो, जबकि उसकी बहन की थाली में ऐसा कुछ नजर ना आये तो जो सबसे

पहली बात उसके दिमाग में घर करेगी वो ये कि "लड़कियों की औकात लड़कों से नीचले दर्जे की होती है"
और इस पैदा हुई सोच का कारण होगी उसकी माँ..जो बेटे के गलत होने पर भी उसका पक्ष लेगी और बेटी के सही होने के बावजूद उसका साथ नहीं देगी..ये हमारे समाज की सबसे कड़वी सच्चाई है..जहाँ एक महिला ही दूसरी महिला की दुश्मन बनी बैठी है.. और जिस दिन ये सामाजिक ढर्रा बदल गया समाज कुछ हद तक सुधर जायेगा..

2. घरेलू हिंसा-: ये वो दूसरा कारण है जो कुछ हद तक जिम्मेदार है महिलाओं के प्रति बढते अपराधों का| घरेलू हिंसा में जब वो बचपन से ही अपने बाप को शराब पीकर माँ को पीटते हुए देखता है, माँ के चुपचाप सहन करने को देखता है, परिवार-पड़ौसियों के मदद ना करने को देखता है तो सोच यही उपजती है कि औरतें तो होती ही है पिटने के लिए, सहन करने के लिए और ये भी विश्वास हो जाता है कि मदद करने के लिए भी कोई आगे नहीं आयेगा.. तो जिस दिन समाज और सरकार घरेलू हिंसा पर कुछ ठोस करेगी तब शायद ऐसी सोच वाले अपराधी पैदा नहीं होंगे..

3. अशिक्षा और गरीबी-: ये दोनो एक दूसरे के पूरक है..अगर कोई अशिक्षित है तो इसका अर्थ है कि वो शुरू से गरीब है ..और आगे भी गरीब ही रहेगा...क्योंकि शिक्षा में ही केवल वो ताकत है जो किसी इंसान का जीवन सुधार कर सकती है..अशिक्षित वयक्ति की सोच के निम्नस्तर के होने के अनुमान बहुत ज्यादा होतें है..उसकी सोच में महिला की कीमत किसी बच्चे पैदा करने वाली और उन्हें पालने वाली से ज्यादा नहीं होती..
हालांकि हमने देश को शिक्षा का अधिकार दे तो दिया पर धरातल पर आज भी इसे सही तरह से लागू करना, इसका प्रचार करना बाकी है..स्कूलों और अध्यापकों की संख्या बढाये जाने की जरूरत है..

4. सह-शिक्षा का अभाव( Non Co-Education)-: हालांकि इस पर कार्य अच्छी प्रगति पर चल रहा है..क्योंकि सह शिक्षा एक लड़का और लड़की को दोस्त बनने का मौका देती है..एक लड़का लड़की को जानने की , उनके व्यवहार, उनके मन को पढने की कोशिश करता है और इन सब में उसका दिमाग अच्छी तरह से समझ जाता है कि एक लड़की के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किस तरह किया जाता है..उनकी इज्जत किस तरह की जाती है..
इस निवारण की मदद से हम समाज के जड़ में बुराई को पनपने से रोका जा सकता है..इस पर और ध्यान देकर लड़कों को लड़कियों की इज्जत करना सिखाया जा सकता है|
 मैं खुद एक Non Co-Education System में ही पढा हूँ( कक्षा 5-10) तो इस मुद्दे को ज्यादा अच्छे से समझता हूँ..हालांकि खुशकिस्मत हूँ कि मेरी सोच किसी के प्रति बुरी नहीं है..

5. सही शिक्षा का अभाव(Child Sex Education) -: इस मुद्दे को समाज में एक Taboo माना जाता रहा है..मतलब ये एक ऐसा मुद्दा समझा जाता है जिस पर खुले तौर पर चर्चा ना तो की जाती है और अगर कोई करता भी है तो अपराधी या बेशर्म समझा जाता है..
इसका विचार मुझे तब आया जब कुछ महीनो पहले मैने India Today magazine में इस पर एक लेखिका का लेख पढा था(नाम याद नहीं है) ..पर उस लेख में उन्होने बहुत अच्छी तरह समझाया था कि कैसे उन्होनें अपनी बेटी को उम्र के अलग-अलग पड़ावों पर शारीरिक अंगो और शरीर में होने वाले परिवर्तनों के बारे में उम्र के अनुसार जानकारी देती रही..मुझे तो ये विचार बेहद पसन्द आया..एक माँ और बेटी का रिश्ता आपसी समझदारी और समन्वय का होता है.
अगर देश की हर माँ अपनी बेटी को इन मुद्दों पर बेबाक होकर चर्चा करे..उनके बाल मन में उठने वाले सवालों का धैर्यपूर्वक और सही से जवाब दे तो ये एक बहुत अच्छा और परिवर्तनात्मक कदम होगा..
इसी तरह एक पिता की भी जिम्मेदारी बनती है कि अपने बच्चों के साथ थोड़ा समय बताये और उन्हे सही-गलत के बारे में    उनके दिमागी स्तर के हिसाब से समयबद्ध तरीके से समझायें तो समाज में ऐसी हजारों समस्याऐं पैदा ही नहीं होंगी| जरा इन पर भी गौर फरमायें |

मुझे हमारी पढाई का समय भी याद आ गया कि जब अलग-अलग कक्षा स्तरों पर विज्ञान का वो चैप्टर आता जिसमें शारीरिक अंगो के बारे में बताया जाना होता था, हमें कभी भी नहीं पढाया जाता था..या तो क्लास नहीं लगती थी, या वो चैप्टर पढाया ही नहीं जाता..हालांकि हमारा स्कूल एक सरकारी स्कूल था और वो भी केवल लड़कों का स्कूल था, फिर भी नहीं पढाया जाता...शायद अन्य स्कूलों में भी ऐसा ही होता होगा..

6. सिनेमा और पोर्न -: ये भी दो छोटे कारण है जो एक हद तक गलत सोच को पैदा करने के जिम्मेदार माने जा सकते है..जिस तरह सिनेमा, और खासकर हाल के वर्षों में सिनेमा में अचानक आयी जवानी भी युवाओं की सोच को खराब करने में थोड़ी सहयोगी बनी है..उस पर भी ध्यान दीजिए..जिस तरह बहुत सी फिल्मों में हीरोईन को सिर्फ कम कपड़ो में और हीरो या विलन के भोग की वस्तु के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है..हालांकि इन पर रोक लगाना तो मुश्किल है पर ये तो तभी मुमकिन है जब फिल्में बनाने वाले इस बारे में सोचें.. करोड़ी क्लबों में शामिल होने की अंधाधुंध दौड़ में शायद वो ये भूल चूके है कि हाल के दौर में वो समाज को एक ऐसी फिल्म जिसे पूरा परिवार साथ बैठ कर देख सके, देने में नाकामयाब साबित हो रहे है..
मोबाईल और इंटरनेट के तेज पहुँच के कारण कम उम्र के बच्चों तक पोर्न की पहुंच हो चुकी है..जबकि उनका शरीर और दिमाग उस स्टेज तक विकसित नहीं हुआ है कि वो पोर्न देखें..
हालांकि पोर्न तो आजकल संसद के अंदर भी पहुँच गया है..फिर बच्चों तक तो इसकी पहुँच होनी ही है..

माता-पिता को अपनों बच्चों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है कि कहीं उनका बच्चा समय से आगे निकलकर अत्यधिक जल्दबाजी से Mature/ Premature/ Overmature (विकसित) होने की कोशिश तो नही कर रहा..अगर ऐसा कुछ करते पाया जाये तो उसे डाँटने की बजाय प्यार से समझायें कि इतनी जल्दबाजी तुम्हारे लिए सही नहीं है, ये अभी तुम्हारा नुकसान ही करेगा, जब इसकी सही उम्र आये तभी इस तरफ आगे बढना..
और ये भी ध्यान रखें की उसकी संगत किस तरह की है, वो किस तरह के लोगों के संपर्क में रहता है या रहती है..उसका ग्रुप कैसी सोच वाला है वो किस तरह का व्यवहार करते है सबके साथ..अगर गलत संगत में है तो या तो उसे उनकी संगत से दूर करें बिना जबरदस्ती के आराम से समझाकर..या फिर उसे अपने ग्रुपवालों को समझाने के लिए कहें और सुधार लाने को कहें|

7. ये कारण लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाया...जिस दिन हिम्मत आ जायेगी उस दिन ब्लॉग को Edit करके लिख दूंगा..तब तक इंतजार कीजिएगा..

खैर ये तो मेरे स्वयं की सोच में उपजे हुए समस्त कारण और निवारणों को मैने लिख दिया है..पर इनका फायदा क्या क्योंकि सरकार का जो बिल है वो इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा..केवल कानून बनाने से परिवर्तन आता तो आज हम दुनिया के सबसे सुधरा हुआ देश भारत कहलातेकहलाते..क्योंकि हमारा संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है..
पर ऐसा कुछ हुआ नहीं..ना अन्य पुराने मामलों में और ना ही निर्भया के इस मामले में..

क्योंकि ये देश का शायद एकमात्र आंदोलन था जिस पर पूरा देश घरों से निकलकर सड़कों पर आया वो भी बिना किसी नेतृत्व के, बिना किसी नेता के...और ऐसा भी नहीं था कि ये आंदोलन सिर्फ देश की राजनीतिक राजधानी दिल्ली में हुआ हो..वरन ये देश के हर छोटे जिले,राज्य में प्रदर्शन हुए..तब निर्भया सिर्फ दिल्ली की ज्योति सिंह नही रह गई थी..बल्कि उन हजारों बलात्कार पीड़िताओं की आवाज बन चुकी थी..

मुझे हमारा आंदोलन भी याद आ गया..मैने और तीन दोस्तो(शिवम, पंकज और रजत) ने भी बीकानेर में निर्भया को न्याय दिलाने के लिए अंबेडकर सर्किल से लेकर पब्लिक पार्क तक कैंडल मार्च किया था..हमने पुलिस की अनुमति और सहयोग से प्रदर्शन किया था..उसमें शीला दीक्षित , दिल्ली पुलिस, केन्द्र सरकार के खिलाफ नारे लगाये..निर्भया को न्याय देने के नारे लगाये.. और मेरा थोड़ा नारे लगाते समय जोश कुछ ज्यादा जागृत हो जाता है तो मैने..
राजस्थान पुलिस, राजस्थान सरकार, पड़ौसी नरेन्द्र मोदी जी के खिलाफ भी नारे लगाये..
लोगों ने पूछा इनके खिलाफ नारे क्यों??
मैने जवाब में कहा "क्यों राजस्थान, गुजरात या मोदी जी के राज में गुजरात में बलात्कार नहीं होते क्या??"
उस समय मोदी जी गुजरात चुनाव जीते ही थे और उनका नाम अगले प्रधानमंत्री के रूप में उछल चुका था..इसिलिए मैने अपने नारों में उनको भी याद किया था..
हमारे आंदोलन का जिक्र मैने अपनी शेखी बघारने के लिए नहीं किया..लोगों ने, स्वयंसेवी संस्थाओं ने दिल्ली में हमसे हजार गुना ज्यादा ताकत से प्रदर्शन किये थे..पुलिस की लाठियां, पानी की बौछारें, आंसूगैस , हफ्तों का Detention, झूठे मुकदमें जैसी बहुत सी यातनाऐं झेली थी..हमारा आंदोलन तो उनके सामने कुछ नहीं था..पर ये सब कवायद जिस वजह से की गई थी उसमें हमें आज भी सफलता नहीं मिली..

पहला तो प्रयास था कि ज्योति सिंह जल्दी से जल्दी ठीक हो जाये..पर वो हमारे नसीब में नहीं था..खुद डॉक्टर स्तब्ध थे कि उन्होने अपने जीवन में कभी ऐसा निर्मम केस नहीं देखा..उन्होंने तो साफ कह दिया था कि वो नहीं बचेगी..3-4 घंटे या ज्यादा से ज्यादा 3-4 दिन..और उसे बचना भी नहीं चाहिए क्योंकि बच भी गई तो सामान्य जीवन नहीं जी पायेगी..दर्द को जीवनभर झेलेगी.. पर उसने जैसे-तैसे और करोड़ो भारतीयों की दुआओं की वजह से वो 13दिन संघर्ष कर पायी और अंतत: Multiple Organ Failure के कारण इस पापी दुनिया से रूखसत हुई और पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर गई..अपने नाम "ज्योति" को चरितार्थ करके गई..एक ज्योति तो बुझ गई पर हजारों ज्योतियां जला गई..

दूसरा प्रयास था कि निर्भया के दोषियों और दरिन्दगी की हद पार कर जाने वाले उन छ: दरिन्दों को जल्द से जल्द फाँसी दी जाए ताकि दुनिया और देश में ऐसी सोच वाले शैतानों को एक संदेश मिले कि इस तरह की गन्दी सोच वालों को बख्सा नहीं जायेगा..पर अब तक हुआ क्या है उस पर गौर फरमाईये..
एक आरोपी रामसिंह 2013 में जेल में चद्दर का फंदा बनाकर आत्महत्या करके कुत्ते की मौत मर गया..एक तो मरा..
फिर चार बालिग दरिन्दे मुकेश, अक्षय, विनय, पवन आज जेल में बैठे हैं उसी सोच की नुमाइंदगी करते हुए..आज भी उसी ठसक के साथ..क्योंकि अब तक हम, हमारा कानून, न्यायालय कुछ भी नहीं बिगाड़ पायें हैं..वो जेल में बैठे है आराम से और अब तो ऐसा प्रतीत होने लग गया है कि हमने फास्ट ट्रेक कोर्ट बना लिये, तेज ट्रायल कर लिया, सारी जिरहें, दलीलें सब कुछ कर लिया पर ना तो उनको आज तीन साल बाद भी हमारे हाथ खाली है..हाईकोर्ट ने फाँसी की सजा दे दी..पर मामला सुप्रीम कोर्ट में लटका पड़ा है..पता नहीं कब सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा..कब हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाएगा..अगर सजा बरकरार रखी तब भी पुनर्विचार याचिका, राष्ट्रपति के पास दया याचिका..यानि की अभी भी बहुत समय बाकी है..उन्हें सजा देने में..
और मेरे हिसाब से देशवासियों का मुख्य मकसद सिर्फ उन चारों को फाँसी दिलवाना नहीं है बल्कि उन चारों को फाँसी दिलवाकर समाज में ही रहने वाले ऐसी सोच रखने वालों को एक कड़ा मैसेज देना है कि "अगर तुम अपनी गंदी सोच से हमारी बच्चियों, महिलाओं की जिंदगी बर्बाद करने की या उनको भोग की वस्तु समझोगे तो तुम्हें कतई नहीं बख्सा जायेगा"
पर हुआ क्या कि जब हम देश के सबसे ज्वलन्त मुद्दे के आरोपियों को अब तक सजा नहीं दिलवा पाये तो हमारा सिस्टम बुरी तरह से इसमें असफल हुआ है..और ये केस ऐसी गंदी सोच वालों के लिए ढाल बनकर उभरा है कि अबतक निर्भया के दोषियों फाँसी नहीं हुई तो किसी और का कोई क्या बिगाड़ पायेगा?..

इसिलिए कह रहा हूँ और मेरे जैसे करोड़ों यही कह रहे है कि, "हे सरकार, हे कानून अब बस कीजिए परीक्षा लेना..इन चारों अपराधियों को फाँसी दीजिए और समाज को संदेश दीजिए"

अब बात करतें हैं उस अंतिम और सबसे ज्यादा पीड़ा देने वाले नाबालिग अपराधी की..वो सोयी संसद का फायदा उठा गया..कानून की लचर हालत का फायदा उठा कर रिहा हो गया..जैसे तैसे तीन साल की बाल सुधार गृह की जिंदगी को काटकर "तड़ीपार" हो गया..उसका आपराधिक रिकार्ड मिटा दिया गया..
उसे आराम से रिहा कर दिया ..कुछ रूपये और दिए गये..और सिलाई मशीन भी दी गई...हालांकि अभी वो एक NGO( Non Governmental Organization) की देखरेख में रहेगा ..क्योंकि इस केस पर सबका ध्यान है..और उसके गाँव वालों ने उसके गाँव में घुसने पर रोक लगा रखी है..

सरकार ने जल्दबाजी में कानून तो बना दिया पर ये भी जरूर आराम से समझ लीजिए कि इस बिल के प्रावधान कितने ही कड़े क्यों ना हो इनका निर्भया के उस नाबालिग अपराधी पर कोई असर नहीं पड़ेगा..जिसने निर्भया(ज्योति सिंह) को सबसे ज्यादा कष्ट पहुँचाया..वो आजाद हो चुका है और अब ताउम्र आजाद ही रहेगा..
हालांकि इसी के साथ मैं यह जोड़ दूँ कि अब तक हम उन चार बालिग रेपिस्टों का भी कुछ नहीं बिगाड़ पाये है..जब BBC की बहुचर्चित और भारत में प्रतिबंधित India's Daughter डॉक्यूमेंट्री देखी, तब पता चला कि उनकी सोच में अब तक कोई सुधार नहीं है..उपर से उन आरोपियों के वकीलों की सोच और दिखाई दे गई..शायद ऐसी घटिया सोच समाज में बहुतों की हो..और है भी..
आपको भी कहूँगा की वो डॉक्यूमेंट्री देखें और जरा उन अपराधियों की सोच को समझें, आपको भी एहसास हो जायेगा कि उनकी सोच तो बद़ से बद़तर हो चुकी है..और आपको भी अपने आस-पास ऐसी सोच के लोग दिख ही जायेंगे..बस देखने वाली और व्यक्तित्व परखने वाली नजर चाहिए..
उन चारों बालिग आरोपियों की सोच तब भी वैसी ही थी और आज भी वैसी ही है..
और वो भी तब जबकि उनको फाँसी की सजा देने का फैसला आया है..फिर हम क्या उम्मीद रखें कि जो सजा हमने इस केस को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर साबित करवाकर, जनदबाव बनाकर दिलवाई थी उसका उनपर कोई फर्क नहीं पड़ा..वो आज भी उसी घटिया सोच जिसमें एक महिला को Use and Throw की वस्तु माना जाये, एक नाजुक फूल और एक कीमती नगीना की संज्ञा दी जाये ना कि उन्हे एक इंसान समझा जाये, जिसको पुरूषों के समान हक दिये गये है..

सरकार, समाज और हमें अब इस मूल बात की तरफ ध्यान देने की जरूरत है कि जब कोर्ट की दी हुई Capital Punishment(फाँसी की सजा) से भी उन चारों दरिन्दों की सोच तथा समाज की सोच नहीं बदली तो फिर क्या बदलाव आया इस सब प्रक्रिया से और इस निर्भया आंदोलन से??
सबसे पहले तो खुद के गिरेबां में झांककर देखे की आपकी सोच कहां खड़ी है..
अगर आप पुरूष हैं तो आप महिलाओं के बारे में क्या सोचतें हैं?? अगर आपकी सोच भी उनकी तरह ओछी है तो मन में स्वीकार कीजिए और महिलाओं की इज्जत करना शुरू कीजिए..परिवार से शुरू करिए और समाज तक आगे बढिए..और ये परिवर्तन जरूरी बन गया है..अगर अभी नहीं चेते तो फिर कभी नहीं चेत पाओगे..और आंखों के सामने समाज को बर्बाद होते हुए देखोगे..फिर पछताओगे..

अगर आप महिला हैं तो आप अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए क्या करतीं हैं?? आप खुद के प्रति कितनी सजग हैं??     अगर खुद पर हो रहे किसी भी शारीरिक और मानसिक हमले पर आप चुप रहतीं हैं तो ऐसा करना बंद कीजिए..
"आपकी चुप्पी उनकी सबसे बड़ी ताकत बनती है"
थोड़ा जिगरा दिखाकर करारा जवाब दीजिए उसे ताकि भविष्य में वो किसी अन्य के साथ ऐसा करने की हिम्मत ना कर सके..
सबके साथ खुला व्यवहार रखिए, पर किसी को आपका फायदा उठाने का मौका ना दें..समझें ज़रा..

अपने आस-पास के लोगों की सोच को भी जांचे और परखें..देखें कि उनकी सोच में परिवर्तन आया या नहीं..अगर नहीं आया तो उन्हें ये एहसास जरूर करा दें कि अब आपकी सोच में बदलाव आ चुका है..

"समाज वही सुगम, साफ, स्वच्छ और गतिशील रह सकता है जो समय के साथ अपनी सोच में परिवर्तन लाये"
यही मेरा लक्ष्य है और आपका भी होना चाहिए..

इसी के साथ अपनी बात समाप्त करता हूँ..ब्लॉग पढने के लिए कीमती वक्त निकाला उसके लिए धन्यवाद..
आपकी राय सादर आमंत्रित..और गलती नजर आये तो माफ कीजिएगा..कोशिश करी है कि कोई गलती ना हो..

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Comments

  1. Excellent expression..
    But still problem is there ..we really don't know how to take right step ...I must say we should start changes with in our traditional family culture ...we should more humanistic then traditional phenomenal like respect you elders , speak politely etc. rather than this we should respect right human and right ethics ...so we can save ourselves from domestic violence because 94% rapes are doing by family relatives ..bitter true!!!!
    That's all I want to say !!

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