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बिल नहीं दिल बदलें...

लीजिए....अचानक से दोबारा उत्पन्रन हुए और निर्भया के माता-पिता आशा देवी और बद्रीनाथ जी के संघर्ष, कोशिश और  उम्मीदों, प्रयासों के कारण पैदा हुए राजनीतिक और जनदबाव की वजह से सरकार Juvenile Justice Bill ले तो आई पर शायद कुछ अफरा-तफरी सी नजर आ रही है इसमें..पता नहीं कहाँ आग लगी है..पास कराने की जल्दी में ना तो इन गंभीर अपराधों की जड़ में देखा जा रहा है ना सही तरह से इस तरह के जघन्य अपराधों से समाज को बचाने के उपायों की तरफ ध्यान दिया जा रहा है..ताकि देश मे किसी भी लड़की को दूसरी निर्भया कहने की नौबत ना आये.. हालांकि मेरी सोच इतनी नाउम्मीदी और नकारात्मक नहीं है ..पर स्वतंत्र तौर पर लिखकर अपना नजरिया रखने की कोशिश कर रहा हूँ..क्या पता माननीया बाल विकास मंत्री श्रीमति मेनका गाँधी जी या फिर हमारे Technocrat और Social Media King माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी, मेरा ये ब्लॉग पढकर मेरी राय पर कोई निर्णय ले लें और मेरा जिक्र अपने "मन की बात" में करदें..क्या पता..खैर छोड़िये मुद्दे पर आते हैं.. यह मानने में कोई दिक्कत नहीं है कि जिस दिन से निर्भया के नाबालिग अपराधी की रिहाई की ख

काल्पनिक वास्तविकता की कहानी

ये एक काल्पनिक कहानी है..जिसको बहुत सारी कहानियों से मिलाकर बनाया गया है..!! शुरूआती दृश्य - एक नौकरानी बड़े घर में झाड़ू- पोछा कर रही है..और उस घर का मालिक सुबह 7 बजे ही घर में शराब पी रहा है.. वो भी बेहिसाब तरीके से..! नौकरानी को ऐसा देखते हुए कई वर्ष हो गये थे, पर साहब के गुस्सैल और एकान्त प्रिय स्वभाव की वजह से आजतक उसने इस बारे में कुछ नहीं पूछा! वो नौकरानी एक गरीब परिवार की थी..अपना घर चलाने के लिए वो लोगों के घरों में काम करती थी..उसके पति की ५ वर्ष पहले टीबी की वजह से मौत हो गई..बुजुर्ग सास ससुर और दो छोटे बच्चों की जिम्मेदारी के बोझ ने उसे लोगों के घरों में काम करने को मजबूर कर दिया था ! वो एक काम में दक्ष महिला थी, कभी किसी से लड़ाई झगड़ा नहीं..सिर्फ घरों का काम करती और पहली तारीख को पैसे ले जाती..वो ना तो साहब लोगों से बात करती ना किसी की जिन्दगी में ताक झांक करती.. पर इस आदमी की लगातार खराब होती हालत देखकर उसने एक दिन पूछने के बारे में सोच ही लिया.. पर रवि कुमार नाम का व्यक्ति सबके लिए एक पहेली बना हुआ था..क्योंकि ये एक ऐसे व्यक्तित्व का पुरूष था जिसको सुबह उठते ही

दोस्ती,दगाबाजी और eBIZ

पहले इस ब्लॉग को लिखते समय मै इसे सिर्फ एक मजाकिया घटना की तरह पेश करना चाह रहा था ,मगर अचानक नेट पर इस ब्लॉग का कंटेट ढूँढने पर मुझे कुछ बेहद अचम्भित करने वाले फैक्ट पता चले जो कि मैं आगे बताने जा रहा हूँ... घटना बताने से पहले ये साफ करदूँ कि ऐसा कुछ भी खतरनाक नहीं हुआ है इस घटना में,ये सिर्फ मेरे  मन की भावनाऐं दर्शाने,एक कंपनी के जालसाजी के तरीकों और दो व्यक्तित्वों के व्यवहार पर लिखा गया ब्लॉग है,और मेने इसे लिखने लायक समझा ताकि मैं जीवन में आगे इस हालात से दुबारा गुजरूँ तो फैसला इसे ध्यान में रखकर लूं...और आप भी ऐसी ललचाती सपने दिखाती योजनाओं के लालच में फंसकर रूपये,समय और जमी-जमाई इज्जत को बर्बाद ना कर दें... घटना कुछ इस प्रकार से है कि पिछले कुछ दिनों से एक नया दोस्त मेरी बड़ी चिन्ता कर रहा था,हाल-चाल पूछ रहा था ,पढाई के बारे में पूछ रहा था,मैने भी इसे सामान्य रूप से लिया(जाहिर है हर कोई यही करता) मैने जो हो सकता था वो जवाब दिया... ऐसी सामान्य बातचीत में बंदा क्यूँ कोई अलग ही दिमाग लगाये,मैने भी नही लगाया... और मुझमें एक कमी है कि मेरा व्यक्तित्व एक मिलनसार व्यक्तित्व नहीँ