Skip to main content

वेंटिलेटर पर पड़ी पत्रकारिता पर पत्रकारों को खुला ख़त

प्रिय पत्रकारों,
एक आम भारतीय के नाते आप सबसे बात करनी है, इसलिए आप सबको एक खुला पत्र लिख रहा हूँ, क्येंकि हमारी मीडिया आज के एक बहुत बुरे संकट के दौर से गुजर रही है, और उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए हम सब को आगे आना पड़ेगा.
हमारी मीडिया अपने असली कर्तव्य और खोजी पत्रकारिता को कहीं रखकर भूल गई है, वो जनता और सरकार के बीच के पुल बनने के बजाय खाई बन रहें हैं.
वो ना तो आज सरकारी आँकड़ों का एनालायसिस करतें हैं, ना ही किसी सरकारी योजना का सही ढंग से विश्लेषण करते दिखते हैं, ना ही खुद मेहनत करके कोई खबर ढूँढते हैं.
आज खबर को ढूँढने का समय कहाँ है हमारी राष्ट्रवादी मीडिया के पास, उन्हें इंद्राणी, हनीप्रीत, रितिक-कंगना जैसी "महत्वपूर्ण और देशहित" की खबरों से फुर्सत मिले तब ही तो ऐसा कुछ करेंगें.

मीडिया और विपक्ष आजादी के बाद के सबसे बुरे दौर से गुजर रहें हैं, और जब तक उन्हें एहसास होगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी.

मसलन GST को लागू हुए आज 100 दिन पूरे हो गये हैं, जहाँ मीडिया को ये करना चाहिए था कि वो जमीनी स्तर पर जाकर इसकी खामियाँ ढूँढती और सरकार को उन खामियों से अवगत कराती, पर उन्होने पहले 30दिन GST की तारीफों के पुल बाँधने में और शेष दिन गुरमीत की गुफा और हनीप्रीत को ढूंढने में बिता दिये.
और विपक्ष का तो कहना ही क्या वो तो पता नहीं कहाँ कौनसी दुनिया में जी रहे हैं, एक मजबूत विपक्ष लोकतंत्र का प्रहरी होता है, और सरकार के हर गलत कदम के खिलाफ खड़ा होता है, जनता के पास जाकर उन्हें सच्चाई से अवगत कराता है, पर हमारे देश से विपक्ष विलुप्त है यही हमारा दुर्भाग्य है.

आज पूरा देश समझ रहा है कि मीडिया किसकी जेब में हैं, और कौन उन्हें कैसे इस्तेमाल कर रहा है.
मीडिया का असली काम होता है सरकार और जनता के बीच पुल का काम करना, परंतु ये जनता से पूरा कट चुके हैं और सरकार से पूरा लिपट चुके हैं जो कि सबके लिए खतरनाक है,
सरकार की चाटुकारिता और भक्ति करते हुए वो सरकार को जमीनी हकीकत और खामियों को सरकार से छुपा रहें हैं, जिसकी वजह से उन्हें अपनी योजनाओं का सही फीडबैक नहीं मिल रहा, कुछ कमियां जो जल्द दूर होनी चाहिए उन पर पर्दा डालकर कुछ समय तक छुपा दिया जाता है.

मीडिया किसी भी सरकारी योजना का आज जमीनी स्तर पर अवतरण ढूँढ ही नहीं रहा, भले वो सांसद आदर्श ग्राम योजना हो या स्टार्टअप इंडिया-स्टेंडअप इंडिया हो या कोई और भी हो.
सरकार की किसी भी योजना का किसी भी चैनल पर मुझे आंकडों सहित एनालायसिस तो छोड़िये, सच्ची चर्चा तक नहीं देखने को मिलती.

मानने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए कि मोदीजी देश में अच्छी योजनाऐं शुरू कर रहें हैं, पर अगर मीडिया केवल उनकी चाटुकारिता में ही लगा रहेगा और मोदीजी तक अगर योजना की कमिंया नहीं पहुंचेगी तो देश और मोदीजी की छवि दोनो को नुकसान हैं.

आप सरकार की अच्छी योजनाओं की तारीफ करें, जनता को उन योजनाओं के बारे में समझाईये , ताकि जनता को सरकारी योजनाओं का असली फायदा पहुँचे, और सरकार की स्वत: तारीफ हो.

आज सरकार मीडिया को अपने पास फटकने नहीं दे रही, चाहे वो प्रधानमंत्री के प्रेस काँफ्रेंस की बात हो या देशव्यापी मुद्दों पर सरकार की राय/बयान की बात हो.
और मीडिया अपने धरातल से भी नीचे गिरकर पत्रकारिता करके जनता से तो वैसे ही दूर हो चुकी है, और आगे चलकर इनकी गत भी धोबी का कुत्ते जैसी हो तो कोई आश्चर्य नहीं होनी चाहिए.
दूरदर्शन एक सरकारी चैनल है और वो अगर सरकार की तारीफों के गीत गाता नज़र आता है तो बात समझ में भी आती है, लेकिन सारे चैनल अगर दूरदर्शन बन जायेंगे तो कैसे चलेगा??

पहले के प्रधानमंत्री लगभग साल में एक बार प्रेसवार्ता जरूर करते थे, जिसमें प्रिंट-डिजिटल मीडिया के सैंकड़ों पत्रकार विभिन्न मुद्दों पर प्रधानमंत्री से सीधा सवाल पूछते थे, मगर पिछले कई वर्षों से कम होता रहा और अब विलुप्त हो गया है, और मीडिया को इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ा, जबकि उन्हें एकजुट होकर सरकार और खासकर प्रधानमंत्री पर प्रेसवार्ता के लिए दबाव बनाना चाहिए. पर उन्हें आजकल एक दूसरे की टाँग खिंचाई और छींटाकशी से फुर्सत मिले तभी तो ऐसा करने का सोचेंगे, यही बात मेरे और बाकी देशवासियों के लिए चिंता की बात है.

पिछले प्रधानमंत्री नें 10साल में शायद तीन प्रेसवार्ता की थी और मोदीजी ने पिछली बार प्रेसवार्ता के स्थान पर "प्रधानमंत्री के साथ सेल्फी महोत्सव" आयोजित किया था, और हमारे जोशीले पत्रकार उस समारोह में पीएम के साथ सेल्फी लेने के लिए मर रहे थे, धक्का-मुक्की कर रहे थे, असल में मेरी नजरों में तो पत्रकारिता उसी दिन मर गई थी.

आजकल पत्रकार अपना ब्रांडिग में लगे पड़े हैं, बड़े मेट्रो शहरों में उनके होर्डिंग लगाकर वो अपने महिमामंडन में लगे पड़े हैं, और अपने प्राईम टाईम स्लॉट में प्रोगाम के दौरान स्क्रीन पर आग जलने जैसे ग्राफिक्स लगाकर, चिल्ला-चिल्ला कर पत्रकारिता करते नज़र आते हैं. मुझे वो आग शायद सच्ची देशहित की खबरों को जलाकर बनाई हुई प्रतीत होती है.

बाकी जो कुछेक पत्रकार और कुछ अखबार अगर सच्चाई को दिखाने की कोशिश कर रहें हैं उन्हें "सत्ता के साथी" ट्रोल्स और उनकी बिरादरी के चाटुकार पत्रकार किसी भी तरह ऐसे पत्रकारों को दबाने में लगें हैं.

सच्चे पत्रकार जान से मारे जा रहें हैं, जो कोशिश कर रहें है उन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही है.
और चाटुकार पत्रकारों को सरकार द्वारा पुरस्कृत किया जा रहा है, पत्रकारिता इन कुछ चाटुकार पत्रकारों द्वारा मारी जा रही है, जो एक दिन इन चाटुकारों कों भी लील लेगी ये इन्हें समझना चाहिए.

सरकार पर कोई आंच आती है तो ये सब पत्रकार ढाल बनकर बचाव में आ जातें हैं और एक नये मुद्दे को गढ़कर मूल मुद्दे से ध्यान भटकाया जाता है.

मसलन GST को "एक राष्ट्र एक कर" बताकर लागू किया गया और आज उसमें दो GST लगतें हैं, जो दुनिया के किसी देश में नहीं लगते(सिवाय कनाडा)
और उससे भी बड़ी बात है कि दुनिया का सबसे ज्यादा GST रेट हमारे देश में है, पर कोई मीडिया चैनल इसको कहता सुनाई नहीं दिया, आज GST Implementation में आ रही गड़बड़े़ जगजाहिर है और आप नहीं जानते तो किसी व्यापारी से पूछ लें

एक और मोदी सरकार का "मास्टरस्ट्रोक" नोटबंदी जब लागू हुआ तब पूरा देश आश्चर्यचकित था और आशान्वित था कि अब कालाधन, आतंकवाद, अलगाववाद, नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, पत्थरबाजी सब एक झटके में खत्म हो जायेगा, लोगों ने देश की भलाई का सोचकर परेशानी झेली, लाईनें में दिन-रात लगे ,कुछ गरीबों ने अपनी जानें गवाईं, मैने भी देशहित का सोचकर नोटबंदी का समर्थन किया था.
पर आज 11 महीनों बाद शायद आप सब का ये वहम निकल चुका होगा कि नोटबंदी देशहित में थी, लगभग सारा पैसा बैंकों में लौट आया, धनकुबेरों ने अपना कालाधन सफेद कर लिया, गरीबों की आर्थिक हालत बिगड़ी, दिहाड़ी मजदूरों का रोजगार छिन गया, बेरोजगारी और छंटनी बढती गई, पत्थरबाजी और आतंकवाद आज भी वैसा ही चल रहा है.

बेशक सर्जिकल स्ट्राईक एक साहसिक कदम था, हमारी भारतीय सेना नें उससे पाकिस्तान को उसकी औकात याद दिला दी, मगर सारा क्रेडिट कौन ले गया वो आप सब जानतें हैं ही, मगर सर्जिकल स्ट्राईक के बाद क्या??
आज भी कश्मीर में हमारे सैनिक शहीद हो रहें हैं, और सर्जिकल स्ट्राईक के बाद भी इसमें कुछ कमी नहीं आती दिख रही है.

सरकार कहती है कि वो 2022 तक किसानों की आय दुगुनी कर देगी, मगर मुझे कहीं ढूंढने पर भी नहीं मिल रहा कि किसानों की वर्तमान आय क्या है, और ना ही किसी चैनल पर ये सवाल सुनाई दिया, उनके मन में ये सब सवाल क्यों नहीं उठते??

इनके पास बॉलीवुड की गॉसिप, टीवी सीरियल के हर एपिसोड पर, भारतीय क्रिकेट टीम के हर मैच पर चर्चा करने को रोज समय होता है लेकिन देशहित के मुद्दों के लिए कभी टाईम स्लॉट नहीं होता.

पर कहीं किसी चैनल पर इन असली देशहित के मुद्दों पर सार्थक चर्चा होती नजर नहीं आती इसिलिए लोकतंत्र के जर्जर होने का डर लगता है और साफ नजर आता है कि हम किस और जा रहें हैं तथा हमारी मीडिया का इसमें कितना योगदान है.

कुछ महीनों पहले एक समारोह में प्रधानमंत्री के सामने एक पत्रकार राज कमल झा ने बहुत शानदार बात कही थी जो हमारी मीडिया को याद रखनी चाहिए कि "मीडिया के लिए सरकार की नाराजगी और सरकार की नफरत एक " तमगा" या तारीफ समझी जानी चाहिए क्योंकि सरकार को वही बात बुरी लगती है जिसमें उनकी खामी उजागर हो"

इसिलिए भारतीय मीडिया को ये पत्र लिखकर कहना चाहुंगा कि सरकार द्वारा नफरत किए जाने के काबिल बनिए, देश की जनता आपको स्वत: ही प्रेम करने लग जायेगी और आप जनता के साथ गलत होने पर जनता के साथ खड़े होईये, जब आपके साथ कुछ गलत करने की कोशिश की जायेगी तो जनता आपके साथ खड़ी मिलेगी, वर्ना ये याद रखिये कि सरकारें स्थायी नहीं हैं परंतु आपका और हमारा काम तो दिनभर पड़ता रहता है.

मेरा ये पत्र भविष्य में मेरे लिए यादगार के तौर पर रहेगा कि जिस कालखंड में देश की मीडिया का ज़मीर मरा हुआ था, तब मैने अपनी तरफ से एक छोटी सी कोशिश की थी उनका ज़मीर जगाने और सच्ची पत्रकारिता याद दिलाने के लिए.

अगर एक पत्रकार भी इसे पढ़कर सही रास्ते पर लौट आता है तो मेरी तरफ से उस पत्रकार को कोटि-कोटि धन्यवाद.

आप सबका समय निकालकर इस ब्लॉग को पढने के लिए धन्यवाद.
किसी को इससे ठेस पहंचे तो माफ कीजिएगा, उम्र में छोटा समझकर नादानी समझियेगा.

पढकर अपनी अनमोल राय दें.
Twitter.com/@PrashuBikaneri पर ट्विट भी कर सकतें हैं.

Comments

Popular posts from this blog

दोस्ती,दगाबाजी और eBIZ

पहले इस ब्लॉग को लिखते समय मै इसे सिर्फ एक मजाकिया घटना की तरह पेश करना चाह रहा था ,मगर अचानक नेट पर इस ब्लॉग का कंटेट ढूँढने पर मुझे कुछ बेहद अचम्भित करने वाले फैक्ट पता चले जो कि मैं आगे बताने जा रहा हूँ... घटना बताने से पहले ये साफ करदूँ कि ऐसा कुछ भी खतरनाक नहीं हुआ है इस घटना में,ये सिर्फ मेरे  मन की भावनाऐं दर्शाने,एक कंपनी के जालसाजी के तरीकों और दो व्यक्तित्वों के व्यवहार पर लिखा गया ब्लॉग है,और मेने इसे लिखने लायक समझा ताकि मैं जीवन में आगे इस हालात से दुबारा गुजरूँ तो फैसला इसे ध्यान में रखकर लूं...और आप भी ऐसी ललचाती सपने दिखाती योजनाओं के लालच में फंसकर रूपये,समय और जमी-जमाई इज्जत को बर्बाद ना कर दें... घटना कुछ इस प्रकार से है कि पिछले कुछ दिनों से एक नया दोस्त मेरी बड़ी चिन्ता कर रहा था,हाल-चाल पूछ रहा था ,पढाई के बारे में पूछ रहा था,मैने भी इसे सामान्य रूप से लिया(जाहिर है हर कोई यही करता) मैने जो हो सकता था वो जवाब दिया... ऐसी सामान्य बातचीत में बंदा क्यूँ कोई अलग ही दिमाग लगाये,मैने भी नही लगाया... और मुझमें एक कमी है कि मेरा व्यक्तित्व एक मिलनसार व्यक्तित्व नहीँ

काल्पनिक वास्तविकता की कहानी

ये एक काल्पनिक कहानी है..जिसको बहुत सारी कहानियों से मिलाकर बनाया गया है..!! शुरूआती दृश्य - एक नौकरानी बड़े घर में झाड़ू- पोछा कर रही है..और उस घर का मालिक सुबह 7 बजे ही घर में शराब पी रहा है.. वो भी बेहिसाब तरीके से..! नौकरानी को ऐसा देखते हुए कई वर्ष हो गये थे, पर साहब के गुस्सैल और एकान्त प्रिय स्वभाव की वजह से आजतक उसने इस बारे में कुछ नहीं पूछा! वो नौकरानी एक गरीब परिवार की थी..अपना घर चलाने के लिए वो लोगों के घरों में काम करती थी..उसके पति की ५ वर्ष पहले टीबी की वजह से मौत हो गई..बुजुर्ग सास ससुर और दो छोटे बच्चों की जिम्मेदारी के बोझ ने उसे लोगों के घरों में काम करने को मजबूर कर दिया था ! वो एक काम में दक्ष महिला थी, कभी किसी से लड़ाई झगड़ा नहीं..सिर्फ घरों का काम करती और पहली तारीख को पैसे ले जाती..वो ना तो साहब लोगों से बात करती ना किसी की जिन्दगी में ताक झांक करती.. पर इस आदमी की लगातार खराब होती हालत देखकर उसने एक दिन पूछने के बारे में सोच ही लिया.. पर रवि कुमार नाम का व्यक्ति सबके लिए एक पहेली बना हुआ था..क्योंकि ये एक ऐसे व्यक्तित्व का पुरूष था जिसको सुबह उठते ही